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Bhajman Vidyasagar Bhajan | भजमन विद्यासागर भजन

Bhajman Vidyasagar Bhajan | भजमन विद्यासागर भजन

Bhajman Vidyasagar Bhajan | भजमन विद्यासागर भजन

आशा रही न कल की, कल को भुलाया,
कल्याण के पथिक हो, जग को जगाया ।
आचार्य सुन्दर दिगम्बर रूपधारी,

जो आपको निरखता बनता पुजारी ।।

चरण-धूल अपने गुरुवर की, शिष्य – शीष पर चन्दन है,

गुरुवर के चरणों का वन्दन, संयम का ही वन्दन है,
शिष्य और गुरुवर दोनों में, अमिट-प्रेम का बन्धन है,

गुरुवर की हर साँस शिष्य के, भक्त हृदय का स्पन्दन है ।।
भज मन विद्यासागर, भज मन विद्यासागर ।


विद्यासागर मीठे सागर, जल के सागर हैं खारे,

सागर से सागर ना तारे, ताप, ताप को ना मारे ।
भव-सागर से विद्यासागर, किन्तु भव्य – जन को तारे,

पश्चात्ताप करा कर स्वामी, पाप ताप को संहारे ।।
भज मन विद्यासागर, भज मन विद्यासागर ।


चक्कर में पड़ने वाले को, माया बहुत छकाती है,

बनता है जो दास उसे यह, काया बहुत रुलाती है ।
छाया का पीछा करने पर, छाया हाथ न आती है ।

गुरु-सेवा ही भव्य-जनों को, भव से पार लगाती है ।
भज मन विद्यासागर, भज मन विद्यासागर ।


संसार में गुरु-कृपा, सबसे निराली,
होली यही, दशहरा, यह ही दिवाली ।
जो शिष्य है, वह सदैव ऋणी रहेगा,

निर्वाण प्राप्त कर ही ऋण ये चुकेगा ।।

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*जैनं जयतु शासनम्*
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aagamdhara
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