भजमन विद्यासागर – आचार्य विद्यासागरजी गुरुपूजा
चलते-फिरते तीर्थ हैं हरते सब सन्ताप ।
हम तो इतना जानते, आप सरीखे आप ।।
‘शान्ति’, ‘वीर’, ‘शिव’, ‘ज्ञान’ महागुरु, बड़े-बड़े आचार्य हुए, फिर गुरुवर विद्यासागरजी, जग – पूजित आचार्य हुए ।
मुनिवर, आर्या, एलक, क्षुल्लक, त्यागी – व्रतियों के स्वामी, गुरो! आपकी करूँ स्थापना, निज उर में अर्न्तयामी ।।
ॐ हूं अष्टोत्तरशताचार्य-विद्यासागरगुरो ! अत्रावतरावतर संवौषट् (इति आह्वानम्)
ॐ हूं अष्टोत्तरशताचार्य-विद्यासागरगुरो ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः (इति स्थापनम् )
ॐ हूं अष्टोत्तरशताचार्य-विद्यासागरगुरो ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् (इति सन्निधिकरणम्)