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आचार्य श्री 108 विद्यासागरजी महाराजजी की जयमाला

Acharya Vidyasagarji Jaymala | आचार्य विद्यासागरजी जयमाला

गुरुवर विद्यासागर ! गुरुवर विद्यासागर !
पूजा कर गुरुवर्य की, भक्ति भाव उर धार, जयमाला अर्पित करूँ, गुण-माला आधार ।।

शरद-पूर्णिमा का शशि भी जब, मिथ्या-तम न हटा पाया, तब धरती पर पुण्य योग से, आप सरीखा शशि आया ।
विद्याधर सा बेटा पाकर, मल्लप्पा कृतकृत्य हुए, धन्य हुई श्रीमती जनित्री, प्रातः उत्सव नृत्य हुए ।।

भावी मुनिवर पिता आपके, भावी आर्या थीं माता, भावी ब्रह्मचारिणी बहनें, भावी मुनि दोनों भ्राता ।
संस्कारों का बीज आपके, गृह-मन्दिर में था ऐसा, आप संत अग्रज गृहस्थ पर जल में पंकज के जैसा ।।

लक्षण दिखते हैं सुपुत्र के, जब वह रहे पालने में, होना था विख्यात आपको, गुरु का पद संभालने में ।
एक वर्ष भी बीत न पाया, देश हर्ष से युक्त हुआ, मुक्ति-दूत के आने से वह, अँगरेज़ो से मुक्त हुआ ।।

खेल खेलते समय एक दिन, भावी रूप झलक आया, गिल्ली लाने गए गुफा पर, पहला मुनि दर्शन पाया ।
सन् पचपन में श्रमण-शिरोमणि शान्तिसागराचार्य मिले, तभी आपके मन में ‘पीलू’ ! विरागता के फूल खिले ।।

कर्नाटक में करना नाटक, नहीं आपको भाया था, बेलगाम में बेलगाम बन, रहना भी न सुहाया था ।
लेकिन सदा सदलगा का सद, संग आपके लगा रहा, सदाचारमय सद्विचारमय, पन्थ आपका बना महा ।।

पूज्य देशभूषण गुरुवर से, ब्रह्मचर्य-पद स्वीकारा और ज्ञानसागर मुनिवर से, विश्वपूज्य मुनि-पद धारा ।
आप देश के सच्चे भूषण, और ज्ञान के सागर हैं, विद्याधर से आप हुए गुरु, जग में ‘विद्यासागर’ हैं ।।

सन् अड़सठ अजमेर नगर में, ग्रीष्म समय दीक्षा धारी, वातावरण प्रसन्न हो गया, वहाँ हुई वर्षा भारी ।
चार वर्ष के बाद आपको, गुरु ने अपना स्थान दिया, जन-जन की आँखें भर आईं, गुरु ने जब सम्मान किया ।।

हृदय आपका कोमल स्वामी, पर कठोर अनुशासन है, घंटों तक निश्चल ही रहता, सामायिक का आसन है।
शूलों पर चलते रहते पर, फूलों सी शोभा पाते, पापों की दुर्वास भगाते, संयम की सुवास लाते ।।

गुरुवर आप अनोखे चुंबक, जिसने सबको खींच लिया, कलियुग में भी वसुन्धरा को, धर्मामृत से सींच दिया ।
विद्वत्ता के संग तपस्या, बहुत कठिन है मिल पाना, हे गंगा-यमुना के संगम! मधुर आपका मुस्काना ।।

अनुज युगल के साथ आपका, नग्न रूप यह दिखलाता, अंगारों पर तप करके ही, कंचन कंचन बन पाता ।
अद्भुत व्यक्तित्व आपका, है असीम तव गुणमाला, वर्णन में असर्मथ हुई है, पूजा की यह जयमाला ।।

गुरुवर के गुणगान से, होता हर्ष अपार, जयमाला भी है कहाँ, गुरु का उपसंहार ।।

गुरुवर विद्यासागर ! गुरुवर विद्यासागर ! गुरुवर विद्यासागर ! गुरुवर विद्यासागर !


ॐ ह्रूं अष्टोत्तरशताचार्य-विद्यासागरगुरवे जयमाला- पूर्णा निर्वपामीति स्वाहा

*जैनं जयतु शासनम्*
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aagamdhara
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