वंदे मा तरम्
वंदे मातरम् ।
सुजलांसुफलां मलयजशीतलाम्
स्यश्यामलांमातरम् ।
शुभ्रज्योत्स्नापुलकितयामिनीं
फुल्लकुसुमितद्रुमदल द्रु शोभिनीं
सुहासिनीं सुमधुर भाषिणीं
सुखदां वरदांमातरम् ॥
वंदे मातरम् ।
कोटि-कोटि-कण्ठ-कल-कल-निनाद-कराले,
कोटि-कोटि-भुजैधृत-खरकरवाले,
अबला केन मा एत बले ।
बहुबलधारिणीं नमामि तारिणीं
रिपुदलवारिणीं मातरम् ॥
वंदे मातरम् ।
तुमि विद्या, तुमि धर्म
तुमि हृदि, तुमि मर्म
त्वंहि प्राणाः शरीरे
बाहुतेतुमि मा शक्ति
हृदयेतुमि मा भक्ति
तोमारई प्रतिमा गडि मन्दिरे-मन्दिरे मातरम् ॥
वंदे मातरम् ।
त्वंहि दुर्गा दु दशप्रहरणधारिणी
कमला कमलदलविहारिणी
वाणी विद्यादायिनी, नामामि त्वाम्
कमलां अमलां अतुलांसुजलांसुफलांमातरम् ॥
वंदे मातरम् ।
श्यामलां सरलांसुस्मितांभूषितां
धरणीं भरणीं मातरम् ॥
वंदे मातरम् ।
गीत – बंकिमचंद्र चटर्जी
।। ॐ नमः सिद्धेभ्य: ।।
दुर्लभम् भारते जन्म ।
बोधि दुर्लभ अनुप्रेक्षा में एक ऐसी पंक्ति भी कहीपर आती है की अनेक मुश्किलों को पार करके अपनेको सच्चा धर्म मिलता है और अपन सही रास्ते को प्राप्त करते है। उनमेसे हमने एक कठिनाई हमने ये भी बताई की भारत में जन्म होना भी बहुत मुश्किल है । कुछ ख़ास पुण्यात्माओं का जन्म होता है; फिर ये बात अलग है की सारे पुण्यात्मा पुण्य का सदुपयोग नहीं कर पाते । पर फिर भी ये एक महत्व की बात है की भारत में जन्म होना दुर्लभ है । क्या कारण है ?
तो सम्राट सिकंदर- Alexander the Great! जब विश्वविजय के लिए निकला था तो वो अपनी माँ से भारत को जितने का आशीर्वाद लेने गया की माँ मै अब भारत जा रहा हु और सुनते है की भारत में बहुत खजाने है । वास्तव में भारत में बहुत सारा गोल्ड था । रत्न भी बहुत थे । अब तीर्थंकर जब जन्म लेते है तब बरसात होती है रत्नों की । तो खूब खजाने थे । पर सब ले गए लुट लुट के और भारत वाले लोग अतिथियों का ही सन्मान करते रह गए । वो लोग ले गए । अब जब माँ से कहा सिकंदर ने ; माँ बोलती है की बेटा अगर भारत जा रहा है ; मुझे कोई रत्नों का हार या कोई आभूषण लाके मत देना ; सुना है की भारत आध्यात्मिक देश है । हो सके तो एक साधू को लेकर आना बोले । सिकंदर जाता है भारत और कई अनुभव होते है सिकंदर को यहापर ; यहाँ के वीर और सिद्धांतवादी राजाओं से मिलना होता है । बोहोत सारी स्थितियाँ होती है । फिर जब लौटनेका समय आता है तो वो साधु की ख़ोज करते है । तो एक नग्न साधुओं का संघ दिगंबर साधुओं का संघ था तो उनमेसे कल्याण नाम के मुनि थे । वो तैयार होते है उनके साथ चलनेको । बाकी आचार्य तो मन कर देते है की मुझे नहीं जाना है । कहिभी विदेश जानेकी मेरेको रुची नहीं है । कल्याण मुनि वहा जाते है तो जल यात्रा होती है जिस दिन वो अपने देश पहुचने वाला था स्वागत की बहुत भारी तयारियाँ थी वहा और माँ भी प्रतीक्षा में थी की अब मेरे जीवन का अनमोल उपहार मुझे मेरे पुत्र ला करके देगा ; भारत से एक साधू को लेकर के आ रहा है वह ।
तो मार्ग में बोहोत प्रसन्न था सिकंदर ; बस अब थोडा सफ़र बाकी था ; समुद्री सफ़र था । अब पहुच जाएंगे घर ; माँ से मिलेंगे । तब कल्याण मुनि उनके हाथ को देखते है और बोलते है की ये जाहज तो अवश्य पहुचेगा तटपर लेकिन जहाज पहुचनेसे पूर्व तुम परलोक पहोंच जाओंगे । मेरा निमित्त ज्ञान कहेता है की तुम्हारी आयु कुछ समय शेष रह गयी है । सिकंदर अपने जितने हकीम थे बोहोत बड़े बड़े उनको बुलाता है । और सबको बोलता है की मेरी रक्षा करना ; अभी तो मै बिलकुल ठीक हु पर बाकी पता नहीं गुरु महाराज कह रहे है की मेरा स्वास्थ्य बिघड़ने वाला है और फिर बचना मुश्किल है । थोड़े समय बाद उसे बैचैनी होने लगी । उसके शरीर में शिथिलता आने लगी । उसका तापमान बढ़ गया । और फिर वो आकुल व्याकुल हो गया । बोले की बस अब तट बोहोत दुर नहीं है कुछ ही घंटे बचे है ; बस एक बार मै अपनी माँ से मिल लु ; फिर भलेही मेरी आयु पुरी हो जाय ; मुझे चिंता नहीं है ।
तो हकीम नब्ज पकडे हुए थे ; बोलते है की स्थिति वास्तव में बिलकुल नाजुक है । बोलते है की चिंता मत करों मेरे बड़े बड़े खजाने है वो तुम लेलेना लेकिन अच्छी से अच्छी औषध देकर मुझे ठीक करों। पर वो ऐसे आख़े निचे झुका लेते है । पर अंत में सिकंदर को ये निर्णय हो जाता है की मेरा समय आ चूका है । तब वो आदेश देता है की ठीक है मै नहीं बचूंगा । गुरु के वचन सत्य है । पर मेरा एक आदेश है की मेरी जब यात्रा निकले ; शव यात्रा तब मेरे हाथ ऐसे कफ़न से बाहर रखना । माने पुरे अंग को वस्त्र से ढांकते ही है पर ये मेरी हथेलियों को बहार निकाल रखना । ताकि दुनिया देख सके की मुट्ठी बांधकर सिकंदर सम्राट हाथ पसारे चला गया । खाली हाथ जाना पड़ा । कुछ नही ले गया । फिर मेरी अर्थी को कन्धा देनेवाले ये वैद्य हकीम हो ; ये चिकित्सक हो । ताकि दुनिया देख सके की मौत से बचाने वाला इस धरती पर कोई चिकित्सक पैदा नहीं हुआ । और मेरे आगे पीछे ये खजाने चले ताकि दुनिया देख सके की कोई खजाना इंसान की मौत को टाल नहीं सकता ।
फिर गुरु महाराज ने अंत में उसे संबोधन दिया ; उसका मन शांत हुआ । फिर वोही हुआ जो उनके द्वारा कहा गया था । वहा आजतक misra में कहा करते है की
The feet of calanous ; कल्याण मुनि के चरण बने हुए है । जैन परंपरा में चरण बनाने की पद्धती है; दो चरण बनते है और श्रावक की सल्लेखना होती है तो कहते है की एक चरण बनाते है उसका । एक देश व्रत होते है ना । और इनके सकल व्रत होते है तो दोनों चरण बनते है । तो एक संस्कृत कविता है जिसको बंकिमचंद्र चटोपाध्याय ने लिखा था ।
दुर्लभम् भारते जन्म – भारत में जन्म दुर्लभ है । और भारत त्रेषटशलाका पुरुषोंकी जन्म भूमि है । कुछ प्रतिनारायण विजयार्ध पर्वत की श्रेणी यों में विद्याधर लोक में उत्पन्न हुए है और ये महापुरुषों की धरती है ।
यहाँ योग को पूजा जाता है ; भोग को नहीं ।
यहाँ संस्कारों को महत्त्व दिया जाता है ; सुख को नहीं ।
हम लोग बचपन में जब स्कूल में पढ़ते थे तब fourth क्लास में teacher एक madam थी हम लोगों की जंग madam वो एक गीत ; बच्चों को गीत गवाते है अंग्रेजी में
Blessed m I that I am, want to this land of India
मै धन्य हु जो इस भारत की भूमि में मेरा जन्म हुआ है । और जिनको स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के बलिदानों का भान है की कैसी कैसी कुर्बानियां देकर उन्होंने देश के लिए अपनी जान न्योछावर कर दी । वो इस धरती के कीमत को जान सकते है । जो फिल्मी संस्कृतिसे प्रभावित होकर शौकियां बन गए है उनको ना तो माँ-बाप की कीमत समझ में आ सकती है और ना धरती माँ की कीमत समझ में आ सकती है । अपन धरती माँ बोलते है । अपन गौ – माँ; माता बोलते है । अपन भारत माता बोलते है । ये बार बार हर जगह माता; देवी माता ; पद्मावती माता ; माता माता क्यूँ बोलते है ? क्युंकी यहापर वो दृष्टी ही ऐसी है ।
यहापर किसीको सुख के सामग्री के रूप में न देखकर सम्मान की दृष्टी से देखना सिखाया जाता है । गुरुकुल पद्धति का विनाश करके सन १८६० के बाद convent पद्धति को यहाँ introduce किया गया । Macaulay एक अंग्रेजी विदेशी व्यक्ति था । उसने Indian Educational Act लागु करके यहासे गुरुकुल पद्धति को हटा दिया । क्युंकी वो तेज दिमाग वाले लोग थे । वो जानते थे की भारत वासियों को कमजोर बनाना आसान काम नहीं है । क्युंकी यहाके संस्कार इनकी खून में और इनकी रगों में बोहोत गहेराई तक भरे हुए है । यहाँकी माटी ऐसी है की कोई ना कोई चंद्रशेखर आज़ाद ; कोई ना कोई भगतसिंग ; कोई ना कोई वीर ऐसा पैदा ही होता रेहेता है । तो इनको गरीब बनाओं । गरीब लोग गद्दारी का रास्ता आसानी से पकड़ लेते है । और इनकी शिक्षण पद्धति को दूषित कर दो क्युंकी ये एक कहावत है की अगर शास्त्र नहीं रेहते तो कुछ समय बाद उन शास्त्रों से जो धर्म चल रहा था वो नष्ट हो जाता है । और न्याय व्यवस्था को इतना जटिल बना दो की किसीको न्याय तत्काल मिल ही ना सके । तो तीन चीजों पर attack करके देश को कमजोर बनाया गया । और कई लोग traitors थे ही; गद्दार थे । तो उनके साथ हो गए । उनको मदत दी । लोभ के कारण । और फिर अपना पवित्र देश कमजोर पड़ा लेकिन तब भी अभी भारत की किस्मत फूटी नहीं है । अभीभी भारत में बोहोत से ऐसे लोग है जो सच्चाई से प्रेम रखते है । जो बेईमानी से नफरत करते है । ऐसे बोहोतसे लोग है ।
तो बंकिमचंद्र चटर्जी ने बोहोत सुंदर गीत लिखा था जिसको रेडियो स्टेशन्स पर हम लोग बचपन से राग देस में सुनते आ रहे है ।
वंदे मा तरम्
मातरम् — मात्रु शब्द का द्वितीयाँ में एकवचन का प्रयोग है । इसका अपन अर्थ भी देख लेते है ।
वंदे मा तरम्
वंदे मातरम् ।
सुजलांसुफलां मलयजशीतलाम्
स्यश्यामलांमातरम् ।
वंदे मातरम् ।
भारत माता का हम वंदन करते है। मै भारत माता की वंदना करता हु । कैसी है भारत माता ?
सुजलां – स्वच्छ जल से परिपूर्ण है। यहाँ की नदियाँ साफ़सुथरी है ।
सुफलां – यहाँ बड़े सुंदर सुंदर फल लगते है वृक्षों पर ।
मलयज शीतलाम् – और मलय गिरी पर उत्पन्न होने वाले चन्दन के कारण शीतल भी है ।
सश्या शामलांम् – जहापर सस्य याने धान्य होनेके कारण ये पृथ्वी जब धन्य से व्याप्त हो जाती है तब थोड़ी थोड़ी सावली लगती है । ; ऐसी रुखी रुखी नहीं लगती । हरी भरी लगती है ।
शुभ्रज्योत्स्नापुलकितयामिनीं ; फुल्लकुसुमितद्रुमदल द्रु शोभिनीं ;सुहासिनीं सुमधुर भाषिणीं ;सुखदां वरदांमातरम् ॥
वंदे मातरम् ।
वंदे मातरम् ।वंदे मातरम् ।
शुभ्रत्ज्योत्स्ना – उज्वल चान्दनिसे ; पुलकित यामिनी – पुलकित है रात्री जहापर ; अर्थात भारत की धरती पर जब चाँदनी छिटकती है तब रात बड़ी सुंदर सुहावनी लगती है। और यहापर फूल से पुष्पित वृक्षों के दल अर्थात पत्ते इस भारत की भूमि पर श्होभित होते है ; उन वृक्षों से ये धरती शोभित है ।
सुहासिनीम् – ऐसा लगता है की ये सुहासिनी है अर्थात मुस्कुरा रही है ; ये धरती हस रही है । मंद मंद इसकी हसी आ रही है ।
सुमधुर भाषिणिम् – और बिना बोले भी ऐसा लगता है की ये बोहोत मीठी- मीठी बाते कर रही है । ये भारत की भूमि । ये भारत माता है ।
सुखदाम्-वरदाम् – ये सुख को देने वाली है ; ये इष्ट को प्रदान करने वाली है । ऐसी माँ ; भारत माता उसकी मै वंदना करता हु।
कोटि-कोटि-कण्ठ-कल-कल-निनाद-कराले,
कोटि-कोटि-भुजैधृत-खरकरवाले,
अबला केन मा एत बले ।
बहुबलधारिणीं नमामि तारिणीं
रिपुदलवारिणीं मातरम् ॥
वंदे मातरम् ।
कुछ शब्द बिच में बंगाली भाषा के भी है ।
साथ करोड़ कंठोसे कल कल निनाद की वजह से कराल डरावने और सप्तकोटिर् भुजै और उसी तरह करोड़ों भुजाओंमे धारण की है खर करवाल टेनी तलवार जिन्होंने। ऐसे योद्धा भी भारत की भूमि पर होते है । उनसे भी ये भिमी शोभित है ।
के बोले माँतुमि अबले —- कौन बोल सकता है की माँ तुम अबला हो । तुम्हारे सपूत वीर है ।
वीर प्रसवा वसुंधरा — वीरों को जन्म देनेवाली ये भारत भूमि है ।
बाहुबल धारिणी — तुम्हारी भुजाओं में बल है ।
नमामि तारिणीम् — और तुम तारने वाली हो ; यहाँ पर जो संस्कार है ; यहाँ जो आश्रम व्यवस्था रही है ; ब्रम्ह्चार्यश्रम ; विद्यार्थी जीवन तक ब्रम्हचर्य रहेगा ; फिर गृहस्ताश्रम – संतान आदिक से निवृत्त होकर फिर वानप्रस्थाश्रम और अंत में संन्यास आश्रम । तारने वाली है ।
रिपु दल वारिणिम् — और शत्रुओं के सैन्य बल को उनके समूह को दुर करने वाली है ; उनका निवारण करने वाली है । ऐसी माता को मै वंदन करता हु ।
तुमि विद्या, तुमि धर्म
तुमि हृदि, तुमि मर्म
त्वंहि प्राणाः शरीरे
बाहुतेतुमि मा शक्ति
हृदयेतुमि मा भक्ति
तोमारई प्रतिमा गडि मन्दिरे-मन्दिरे मातरम् ॥
वंदे मातरम् ।
वंदे मातरम् ।वंदे मातरम् ।
तुम्ही विद्या हो ; तुम्ही धर्म हो ; तुम मेरे ह्रदय में हो ; तुम्ही धर्म का मर्म हो । तुम्ही शरीर में प्राण हो ।
तुम्ही मेरे बाहू की शक्ति हो । तुमही मेरे ह्रदय की भक्ति हो । तुम्हारी प्रतिमा प्रत्येक घर घर में गढ़ गढ़ के विराजमान करने योग्य है । घर घर में भारत माता की प्रतिमा विराजमान करने योग्य है ऐसा लिखा है ।
त्वंहि दुर्गा दु दशप्रहरणधारिणी
कमला कमलदलविहारिणी
वाणी विद्यादायिनी, नामामि त्वाम्
कमलां अमलां अतुलांसुजलांसुफलांमातरम् ॥
वंदे मातरम् ।
दश प्रहरण को धारण करनेवाली तुम्ही दुर्गा हो ;
देखिये हरिवंश पुराण में श्री कृष्णा जी की जो बेहेन थी ; दुर्गा थी ; और वो भी दस प्रहरण ; दस अवजारों को धारण करने वाली ; उत्तम क्षमा; मार्दव आदि दस धर्मों को धारण करने वाली वोही उनके हथियार थे ।
फिर कमला कमलदलविहारिणी – और यही भारत माता लक्ष्मी रुपी है ; कमल के दल पर विराजमान रेहने वाली ; उसी पर विहार करने वाली ; विचरण करने वाली ।
वाणी विद्यादायिनी – वही सरस्वती भी है। नमामि त्वां – मै भारत माता को नमस्कार करता हु ।
नमामि त्वाम् कमलां अमलां अतुलां – भारत माँ लक्ष्मी रूप में जो अमल निर्मल है ; अतुल है ;उस भारत माता को नमस्कार ।
सुजलांसुफलांमातरम् – सुंदर जल और सुंदर फलों वाली माँ को वंदन ।
श्यामलां सरलांसुस्मितांभूषितां
धरणीं भरणीं मातरम् ॥
वंदे मातरम् ।
जो शामल है ; सरल है ; सुंदर मुस्कान से युक्त है और भूषिताम् आभूषणों से युक्त है ; विभिन्न प्रकार के जो resources है ; भारत के कई जगह तांबा निकलता है ; कइ जगह लोहा निकलता है कही सोना कही पन्ना कही हिरा ऐसी कई खाने है यहापर तो उन सबसे भूषित है।
धरणीं — ये धरणी पृथ्वी है ; भरणीं — सबकी रक्षा करनेवाली ;सबको भरने वाली है ; पुर्ण करने वाली है । भरण-पोषण करनेवाली माँ है ।
वंदे मातरम् । — ऐसी माँ को वंदन हो ।
जिसके अंदर देश भक्ति नहीं है ; जिसके अंदर अपने माता पिता के प्रति विनय नहीं है वो प्रभु की भक्ति ; सरस्वती की भक्ति ; और गुरु की भक्ति क्या करेगा?
सर्वएवै: जैनानाम् प्रमाणंलौकिकौ विधि: ।
यत्र सम्यक्त्व हनिर्नयत्र न व्रतदुषणम् ।।
जैनों के लिए सारी लौकिक विधि सच्ची है । बस इतना ध्यान रखना है की सम्यक्त्व की हानि न हो किसी विधि से । अथवा व्रतों में दोष ना लगे । तो वो सारी लौकिक विधियाँ जैनों के लिए प्रामाणिक हैं । ऐसा उपासक अध्ययन ग्रन्थ में आचार्य सोमदेव सूरी ने लिखा है ।
तो यहाँ पर अपन ने आज जो देश के बारेमे ये बात पढ़ी उन्होंने अपनी भावना से लिखा था ; फिर अपन ने जो भी समझा वो अपने तरीकेसे यहापर प्रस्तुत किया ।
तो ये देश ; ये क्षेत्र वास्तव में आर्य खण्ड तीर्थंकरों के विहार का क्षेत्र है । तो उनके विहार से पवित्र यह धरती कैसे अमान्य हो सकती है ? वो तो जहा गुरु अपने पैर रखते है वो माटी पूज्य हो जाती है ।
क्षमा सागर मुनिराज ; निर्यापक योग सागर मुनिराज ; मुनिश्री स्वभाव सागर मुनिराज सब लोग ग्रीष्म काल में सन ८८ ; १९८८ में दमोह में रुके हुए थे । और आहार चर्या के लिए जब जाते थे ; ग्रीष्म काल था । मै- जुन का समय था । तो जब आहार के लिए जाते थे ; साडे नौ ९:३० बजे के बाद उठते थे ; एकदम धरती तप जाती थी ; गरम हो जाता था । जाते थे ; फिर लौट कर आते समय जो लोग कमंडल पकड़कर छोड़ आते थे वो उनके पैर जलते थे तो वो बारम्बार रास्ते में जहा जहा छाव मिलती थी तो वहा भागकर के खड़े हो जाते थे ; तो जो अजैन बंधू थे ; जैनेतर थे वो जहा जहा वो साधु पैर रखते थे ; दिगंबर साधु ; वहाकी मिट्टी लेकर जा करके ऐसे सीर पर लगाकर अपने घर पर रखते थे । बड़ी श्रद्धा से अपने शोकेस में ; अलमारी में और जहा अपना देवस्थान है वहा रखते थे । तो जब साधू के चरणों की माटी पूज्य होती है और गंधोदक भी अपन मस्तक पर लगाते है; चौके में आहार के देने के पेहेले नावोप्चार विधि में ये भी एक प्रक्रिया है । तो फिर जहा तीर्थंकरों ने विहार किया है वो धरती ; वो धरती जो की स्त्रीलिंगी है इसलिए स्त्री को अपन माँ के रूप में सम्मान देते है ; तो उसको भारत माता कहकर के नमस्कार करने में जैनिओं को क्या आपत्ति हो सकती है ?
भारत माता की जय हो ।
जैनं जयतु शासनम् ।।