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भारत की स्वतन्त्रता का अमृत महोत्सव गीत | जैन संत श्री ध्यानसागरजी महाराज

भारत की स्वतन्त्रता का अमृत महोत्सव गीत

अमृत छलकाता- भारत की स्वतन्त्रता का अमृत महोत्सव अमृत पिलाया जिसने, आज उसकी अमृतगाथा गाने का मंगल अवसर है। भारत का शुभनाम भरत नामक प्रथम चक्रवर्ती के नाम से विख्यात हुआ। भारत ईश्वरीय अवतरण भूमि है, पारम्परिक विविधता के होते हुए भी सांस्कृतिक एकता का स्थल है और इसका महान् इतिहास असाधारण आदर्शों से भरा पड़ा है। यहाँ बहुत सी प्रान्तीय कलाएँ दृष्टिगोचर होती हैं, यहाँ बहुविध भाषाएँ बोलीं जाती हैं और यहाँ पर आयुर्वेद जैसी प्राचीन चिकित्सा पद्धतियाँ उपलब्ध होती हैं । विविधता में एकता के कारण भारत देश एक श्रेष्ठतम विश्वविद्यालय प्रमाणित होता है। समय के साथ जब भारत की ऐसी समृद्ध परंपराओं पर भी आक्रमण हुए तब देशभक्तों ने अपने प्राणों की आहूति देकर देश कि रक्षा की। सैंकड़ों वर्षों की परतन्त्रता के उपरान्त लाखों वीरों के योगदान से भारत अन्ततः स्वतन्त्र हुआ । भारत की स्वतन्त्रता हेतु जिन्होंने अपना जीवन बलिदान कर दिया, देशभक्त साहित्यकारों ने अपनी क्षमता के अनुरूप उनका गुणगान किया। लंका-विजय के उपरान्त प्रभु श्रीराम लक्ष्मण से कहते हैं, अपि स्वर्णमयी लंका, न मे लक्ष्मण! रोचते। जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी*॥ “हे लक्ष्मण ! स्वर्णमयी लंका भी मुझे नहीं रुचती; जननी और जन्मभूमि मुझे स्वर्ग से भी अधिक प्रिय हैं ॥” हम इस अमृतमयी मातृभूमि को प्रेम से भारत माता कहते हैं। हमारी माँ भी हमारा लालन-पालन उसी प्रेम से करती है। भारत माता के शीर्ष पर हिमालय सा सुंदर मुकुट है तो चरण पखारता हिंद महासागर है, दोनों ही माँ का अभिवादन करते हैं। देशभक्ति की इसी शृंखला में प्रस्तुत है जिनवाणीपुत्र श्री ध्यानसागरजी क्षुल्लकरत्न द्वारा विरचित पद्यानुवाद सहित संस्कृत अमृत महोत्सव गीत यह सुमधुर गीत उनके ही द्वारा लयबद्ध है । संगीत श्रीयुत अश्विन पंड्या का है । मूल संस्कृत काव्य गायन : जिनवाणीपुत्र ध्यानसागरजी महाराज हिन्दी पद्यानुवाद गायन : श्रीमती पामेला जैन व्हीडियो संकल्पना एवं संयोजन: सौरभ संगई एवं रोशन देवलसी ॥जैनं जयतु शासनम्॥ #amritmahotsav #azadikaamritmahotsav #india #dhyansagar #vidyasagar #jain #independenceday #15august #indian #pamelajain

*जैनं जयतु शासनम्*
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aagamdhara
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